Wednesday, September 28, 2011

"कितने आदमी थे ~~ आक थू ~"! Copyright ©


लगभग चार दशक से यह सवाल
खाए जाए सबको
काले कालिया और संभार साम्भा
भी जाके विपदा बताएं किसको
कैसे बतलायें दोनों क़ि
रामगढ़ में हुआ था क्या
कैसे नमक का हक अदा हुआ
बसन्ती मिली थी किसको
आज सुनलो सभी यह बात
दबी रही है इतने साल
कैसे एक सिक्के के एक पहलू ने
उल्लू बनाया सबको


पहले सुनलो विपदा ठाकुर की
बेचारे के हाथ नहीं थे
पर यह विपदा ,विपदा नहीं है
विपदा यह है क़ि एक तो बीवी को गब्बर मार गया
ऊपर से हाथ भी काट गया
ठाकुर अपनी जलन जताता भी तो कैसे
सोचा दो नौजवानों की भी जवानी
मुर्झाऊंगा मैं ऐसे
एक को टाँगे वाली थमा दी उसने
दूजे को विधवा के साथ किया
फिर दोनों को गब्बर से लडवा के
एक को मौत के घाट किया
रामलाल भी ठाकुर की सेवा का
ढोंग रचाता गया
पूरी दौलत हड़प ली उसने
ऐसे उसने घात किया


अब बारी है एक और किरदार की
जो भुला दी गयी कहानी में
धन्नो बेचारी घोड़ी रह गयी
बसंती खिली जवानी में
जब डाकू पीछे पड़े बसन्ती के
तो " भाग धन्नो भाग " बसन्ती चिल्ला उठी
" आज बसंती की इज्जत का सवाल है" को मुद्दा बनके
सिनेमा में सीटियाँ बजवा चली
पर बेचारी धन्नो का डाईलौग निर्देशक ने हटा दिया
जब धन्नो बोली
" भागुंगी ही मैं तो पागल, तेरी इज्ज़त से पहले मुझे
अपनी इज्ज़त प्यारी है
डाकू केवल तेरे पीछे नहीं
सौ सौ घोड़े मेरी इज्ज़त पे भी भारी हैं"
धन्नो की विपदा को हमने तीस बरसों तक नकार दिया
सीटी मारी, वीरू पे और बसंती को रानी बना दिया


" बहुत कटीली नचनिया होगी ,
ज़रा हमको भी तो दिखाओ दो-चार ठुमके"
कहके गब्बर ने सबको झांसे में डाल दिया
उसके इस सवाल ने उसके चरित्र पे सवाल किया
इसके पहले के सवाल पे किसी ने न ध्यान दिया
" कौन चक्की का आटा खाती हो"
की मासूमियत को सबने नकार दिया
गब्बर तो बेचारा कालिया के कालेपन
का कुछ करना चाहता था
डाकुओं की रूप सज्जा के लिए
उस चक्की का आटा लाना चाहता था
ठुमके उसने मांगे थे बसन्ती से क्युंकी
वोह वीरू को समझाना चाहता था
कि बेटा... ठाकुर का तो जीवन व्यर्थ हो गया
तू अपना मत बरबाद कर
अपनी चिड़िया को उड़ा ले जा
रामगढ़ में न बस जा
कहीं मॉडर्न जगह जाके घर आबाद कर


अब बारी जय की थी जिसके मरने पे सब रोये थे
दोस्ती निभाई उसने , इस धोके में सब सोये थे
दिन भर साहब किसी और की चिड़िया पे नज़र डाला करते थे
बाकी समय वोह , वीरू की प्रेम कथा पे " भांजी " मारा करते थे
अब मुद्दे की बात यह है कि जब सिक्का उछाला था उसने
उसने दोनों पहलू बदले थे तो सोचा वीरू से बसन्ती मांगूंगा
सिक्का उछाल के बसन्ती को टाँगे में ले भागूंगा
पर व्यथा रही कि सिक्का गलत समय पे उसने उछाल दिया
वीरो को कबूतरी मिल गयी
और जय अपनी चाल चलने से पहले सिधार गया


गब्बर ने भी कई सवाल उठाये जिसको हम आज बताएँगे
उसके गुटके खाने की आदत पे भी आज रोशनी डाल जायेंगे
"कितने आदमी थे" यह उसके समलैंगिक संबंधों का प्रमाण है
उसको पकड़ने के लिए इसीलिए "पच्चास हज्जार" का ईनाम है
उसने जलन के मारे ठाकुर के भी हाथ इसीलिए काटे थे
"हरी सिंह" का नाम डुबोया, क्युंकी उसके गले धारा ३७७ के धागे थे
गुटका खा खा उसने कई कंपनियों का प्रचार किया
"आक थू" की गूँज से पूरा रामगढ़ घबराया था
साम्भा को " ऊंचे लोग ऊँजी पसंद" का इसीलिए खिताब मिला


यह सच्चा वृत्तांत सुनके शोले देखने जाईयेगा
और बाकी जो बचा सत्य है..वोह आके फरमाइयेगा
मेरी कविता का पाठ करके , वाह वाह कर जियेगा
" यह दोस्ती" को कृपया बखूबी निभाईयेगा

"आक थू"

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